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Monday, 2 November 2015

जय अघरिया~श्री कन्हैया

जय अघरिया श्री कन्हैया का सूत्र सारे जग में फैलाना है,
शिक्षा,संस्कृति और संस्कार को अपनी पहचान बनाना है।

आदर्श इतिहास हमारा,
ऐ युवा उस आदर्श पथ पर चलना होगा।
झुके न सर हमारा कभी,
कर्म हमें वैसा करना होगा।

एकता अखंडता युक्त सुदृढ़ समाज बनाना है,
आपसी द्वेष नहीं बल्कि भाईचारा बढ़ाना है।

सफलता की राह में विलासिता का पहरा है, जिसने की विजय इसपर उसी के सर "जीत का सेहरा" है।

ऐ युवा रास्ते अनेक हैं,अनेक हैं यहाँ मोड़, इतिहास में न हो ऐसा तू एक पन्ना जोड़।

सहायता की न हो आवश्यकता,
हमें अपनी समर्थता बनाना होगा।
सामने है उज्जवल भविष्य,
हमें अटल नेतृत्व दिखाना होगा।

ऐ युवा निवेदन मेरा कर स्वीकार,
है तुझमें हिम्मत भविष्य को ललकार।
उठ लंबी निद्रा से और कुछ ऐसा कर,
रखे याद इतिहास तुझे कुछ वैसा कर।

जय अघरिया श्री कन्हैया।

Sunday, 1 November 2015

साहित्य का सदुपयोग

हक़ है आपका यह पुरस्कार,
न लाएं लौटाने का व्यवहार।
आम नहीं आप हैं कलाकार,
कीजिये कला से प्रहार।

अचूक है कला का वार,
देखिये करके प्रहार।
बेबाक कल निःशब्द हो जायेगा,
कला का मोल तब उसको हो पायेगा।

करना है विरोध प्रदर्शन तो करें इस विधि से~
लेखक लेखन से करें और कवि करें कविता से,
चित्रकार चित्र से और करें पत्रकार अख़बार से,
न लौटाएं पुरस्कार आज से।

लोकतंत्र की नींव को कोई न छु पायेगा,
जब एक लेखक अपनी कलम उठायेगा।
असहिष्णुता भी दम तोड़ देगी,
जब चित्रकार चित्र से मरहम लगाएगा।
कोशिशों से थम जायेगा हिंसा और अत्याचार,
ईमानदारी से आगे आएं पत्रकार।

Saturday, 31 October 2015

बचपन और जवानी

बचपन का दौर सुहाना होता है,
हर काम के लिए बहाना होता है।

हर गम का दवा खिलौना होता है,
दिल उस खिलौने का दीवाना होता है।

जवानी भी दीवानी होती है,
हर दीवाने की एक कहानी होती है।

कोई ख़ुशी में झूमता है,
तोह कोई गम की घूंट पीता है।

जो चाहा उसका उल्टा ही हुआ है,
जोड़ना चाहा जब खुद को टुटता पाया है।

हर ख्वाब अब अधूरा सा हो गया है,
नज़र में मेरी जमाना बुरा सा हो गया है।

न जाने वो हँसमुख चेहरा अब कहाँ खो गया है,
आंसुओ की धारा में चेहरे का रौनक बह गया है।

जब तोलना चाहा पलड़ा कम पड़ने लगा है,
बचपन की ख़ुशी पर जवानी का गम भारी पड़ने लगा है।