अगर है कल्पना सशक्त समाज की,
तो करों की प्रतिज्ञा आज ही।
नारी को न कहना अबला और न कहना बेचारी,
नारी बिना अधूरी है ये दुनिया सारी।
सोच सको तो सोच लो बिन नारी के संसार,
एक पल उजाला होगा दो पल होगा अंधकार।
घरेलु हिंसा त्यागकर रखो प्रेम का भाव,
सच कहता हूँ मानलो न होगा खुशियों का अभाव।
परहेज करो दहेज़ से दहेज़ प्रथा है बेकार,
आदर्श हो समाज हमारा न की लेनदेन का बाजार।
किसने की शुरुआत दहेज़ की?
सोचिये मत इसमें है गहराई।
क्या आप कर सकते हैं अंत इसका?
कीजिये मत चिंतन यही है सच्चाई।
शिक्षित नारी ही है शिक्षित समाज का आधार,
एक शिक्षित नारी शिक्षित करती है दो परिवार।
आवाज करो बुलंद अपनी और मिलकर बोलो एकसाथ,
ख़त्म करेंगे कुप्रथाओं को प्रतिज्ञा करते हैं हम आज।
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