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Monday, 8 February 2016

गाँव की यादें

कहाँ है....
गाँव का वह स्वच्छ वातावरण,
पेड़ों पर हरयाली का आवरण।

कहाँ है....
लहलहाते फसलों की वो हरयाली,
पके धान की सुनहरी बाली।

कहाँ है....
तालाबों का वह स्वच्छ पारदर्शी जल,
पक्षियों का कलरव करता दल।

जंगल कटकर मैदान बन गए,
मैदानों में उद्योग लग गए।

कृषकों को मिला प्रलोभन,
खेत बेचकर बना लिए  धन।

धान का कटोरा जल्द ही भर जायेगा,
जैसे-जैसे उद्योगों का राख बढ़ता जायेगा।

सिलसिला यही रहा तो धान कटोरा इतिहास बन जायेगा,
और भविष्य में राख का कटोरा कहलायेगा।

जल श्रोतों में मिल रहा है केमिकल,
कुछ दिनों में पीना होगा ऐर्फ मिनरल जल।

वक्त रहते सम्हल जाइये,
वृक्ष लगाइये गाँव की हरयाली बचाइये।

धन्यवाद।

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