आँखों में थे आंसू उसके शायद दिल में गम रहा होगा,
रस्ते के किनारे खड़ा वो लगता था बहुत सितम सहा होगा।
मरहम सब थे बेकार चोट उसका गहरा था,
हालात उसका साथी और भीख ही सहारा था।
काँपते हुए शरीर पर उसके फटे पुराने थे कमीज,
रोया होगा ईश्वर भी लिखते हुए उसका नसीब।
हड्डियाँ पूरी उभर गयी थी काला पद गया था रंग,
पसीने से भीगा हुआ था उसका अंग-अंग।
वो था भोला पर लोगोँ का उसपर था सख्त व्यवहार,
न जाने कौन था उसकी इस दशा का जिम्मेदार।
काम करने की उसकी हालत न थी वो पूरी तरह निर्बल था,
खाना उसको नसीब न था वो एक-एक रोटी को तरसता।
नीला गगन उसका छत और फुटपाथ उसका आशियाना था,
धरती पलंग और घास उसका बिछौना था।