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Saturday, 31 October 2015

बचपन और जवानी

बचपन का दौर सुहाना होता है,
हर काम के लिए बहाना होता है।

हर गम का दवा खिलौना होता है,
दिल उस खिलौने का दीवाना होता है।

जवानी भी दीवानी होती है,
हर दीवाने की एक कहानी होती है।

कोई ख़ुशी में झूमता है,
तोह कोई गम की घूंट पीता है।

जो चाहा उसका उल्टा ही हुआ है,
जोड़ना चाहा जब खुद को टुटता पाया है।

हर ख्वाब अब अधूरा सा हो गया है,
नज़र में मेरी जमाना बुरा सा हो गया है।

न जाने वो हँसमुख चेहरा अब कहाँ खो गया है,
आंसुओ की धारा में चेहरे का रौनक बह गया है।

जब तोलना चाहा पलड़ा कम पड़ने लगा है,
बचपन की ख़ुशी पर जवानी का गम भारी पड़ने लगा है।