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Monday, 8 February 2016

गाँव की यादें

कहाँ है....
गाँव का वह स्वच्छ वातावरण,
पेड़ों पर हरयाली का आवरण।

कहाँ है....
लहलहाते फसलों की वो हरयाली,
पके धान की सुनहरी बाली।

कहाँ है....
तालाबों का वह स्वच्छ पारदर्शी जल,
पक्षियों का कलरव करता दल।

जंगल कटकर मैदान बन गए,
मैदानों में उद्योग लग गए।

कृषकों को मिला प्रलोभन,
खेत बेचकर बना लिए  धन।

धान का कटोरा जल्द ही भर जायेगा,
जैसे-जैसे उद्योगों का राख बढ़ता जायेगा।

सिलसिला यही रहा तो धान कटोरा इतिहास बन जायेगा,
और भविष्य में राख का कटोरा कहलायेगा।

जल श्रोतों में मिल रहा है केमिकल,
कुछ दिनों में पीना होगा ऐर्फ मिनरल जल।

वक्त रहते सम्हल जाइये,
वृक्ष लगाइये गाँव की हरयाली बचाइये।

धन्यवाद।

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Sunday, 31 January 2016

बेबस भिक्षुक

आँखों में थे आंसू उसके शायद दिल में गम रहा होगा,
रस्ते के किनारे खड़ा वो लगता था बहुत सितम सहा होगा।

मरहम सब थे बेकार चोट उसका गहरा था,
हालात उसका साथी और भीख ही सहारा था।

काँपते हुए शरीर पर उसके फटे पुराने थे कमीज,
रोया होगा ईश्वर भी लिखते हुए उसका नसीब।

हड्डियाँ पूरी उभर गयी थी काला पद गया था रंग,
पसीने से भीगा हुआ था उसका अंग-अंग।

वो था भोला पर लोगोँ का उसपर था सख्त व्यवहार,
न जाने कौन था उसकी इस दशा का जिम्मेदार।

काम करने की उसकी हालत न थी वो पूरी तरह निर्बल था,
खाना उसको नसीब न था वो एक-एक रोटी को तरसता।

नीला गगन उसका छत और फुटपाथ उसका आशियाना था,
धरती पलंग और घास उसका बिछौना था।